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Thursday, 22 May 2025

Economic Darwinism

Economic Darwinism: Why Human Progress Still Runs on Primal Instincts

1. मानव व्यवहार में असमानता: प्राकृतिक प्रवृत्ति या पशुवृत्ति?

वैश्विक व्यवस्था में मानव व्यवहार की मूलभूत विषमता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यह एक ऐसा "प्राकृतिक चयन" या "आर्थिक डार्विनवाद" है जहाँ बड़े राष्ट्रों और प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियम और आर्थिक नीतियाँ अलग ढंग से कार्य करती हैं, जबकि छोटे देश या विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ असमान व्यापार समझौतों, सत्ता की गतिशीलता और शोषण का शिकार होती हैं। यह व्यवहार "बाज़ार की अदृश्य शक्ति" के सिद्धांत से मिलता-जुलता हैजैसे यह छोटे खिलाड़ियों को बड़े पूँजीवादी संस्थानों के समक्ष असहाय बना देती है। यह स्थिति एक प्रकार के "जंगल-राज" की तरह है, जहाँ मजबूत अर्थव्यवस्थाएँ कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं का शोषण करती हैं और उन्हें निगल जाती हैंठीक वैसे ही जैसे बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को निगल जाती हैं। यह व्यवहार कदाचित् पशुवृत्ति से उपजा है और अब केवल प्राकृतिक ही नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थनीति का भी अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

2. फ्रायड का सिद्धांत: क्या सभ्यता ने हमें बदला?

सिग्मंड फ्रायड ने माना था कि सभ्यता मनुष्य को उसकी क्रूर प्रवृत्तियों और मूल instincts से दूर ले जाएगी, उसे अधिक संयमशील बनाएगी। उन्होंने सोचा था कि जैसे-जैसे मानव सुसंकृत (civilized) होता जाएगा, वह इस "जंगलिपन" या "प्राकृतिक व्यवहार" पर काबू पाता जाएगा। परन्तु, आधुनिक इतिहास इसके विपरीत चित्र प्रस्तुत करता है और फ्रायड की यह बात अभी तो साची पडती हुई नहीं लगती। द्वितीय विश्वयुद्ध में हुई रणनीतिक तबाही और आज के आर्थिक युद्ध (Economic Warfare) जैसे आर्थिक नाकाबंदी/प्रतिबंधों (sanctions), व्यापारिक शुल्क नीतियों (tariffs), मुद्रा हेरफेर (currency manipulation) और उपभोक्ता बहिष्कार (boycott) की प्रवृत्तियाँ दर्शाती हैं कि सभ्यता के आवरण के नीचे भी आक्रामकता और वर्चस्व की भूख यथावत है। यह व्यवहार "नव-उपनिवेशवाद" का रूपांतरण है और द्वितीय विश्वयुद्ध के यथार्थवादी राजनीति (Realpolitik) और आज के भू-आर्थिक संघर्ष (Geoeconomic Rivalries) में केवल हथियारों का स्वरूप बदला है।

3. क्या आर्थिक युद्ध सभ्यता की प्रगति है?

युद्ध की प्रवृत्ति अब सीधे हथियारों से नहीं, बल्कि आर्थिक उपायों से प्रकट होती है। टैरिफ युद्ध, निर्यात-आधारित नियंत्रण, उपभोक्ता बहिष्कारये उपाय बेशक, नरसंहार से मुक्त हैं। और इस अर्थ में, यह पुराने युद्धों की तुलना में "काफी बेहतर" कहे जा सकते हैं तथा मानव की "सभ्यता की ओर गति" माने जा सकते हैं। अमेरिका द्वारा छेड़ा गया टैरिफ युद्ध यदि आर्थिक गुफामानवता का उदाहरण है, तो भारत जैसे देशों द्वारा अपनाई गई रणनीतिक बहिष्कार नीति एक आत्मरक्षात्मक "नव-आर्थिक युद्ध" की ओर संकेत करती है। यहाँ तक कि बहुसंख्यकवादी नीतियाँ (Majoritarian Policies) का उपयोग आर्थिक प्रभुत्व स्थापित करने के लिए या बचाव के लिए एक हथियार के रूप में हो रहा है। यह सही है कि इनके विनाशकारी प्रभाव कम नहीं हैं। हालाँकि, यह पूरी तरह "शून्य-योग खेल" (Zero-Sum Game) नहीं है, क्योंकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ (Global Supply Chains) और अंतर्निर्भरता (Interdependence) इस युग की वास्तविकताएँ हैं।

4. क्या हम इससे आगे निकल पाएँगे?

मानवता क्या इससे आगे निकल सकती है? बिलकुल निकल सकती है, परन्तु यथास्थिति में बदलाव की कीमत चुकानी पड़ती है। इतिहास गवाह है कि बड़े बदलाव बड़े बलिदान मांगते हैं। जिस प्रकार 20वीं सदी की महामंदी और विश्वयुद्धों तथा असंख्य छोटे युद्धों में बलिदान देने के पश्चात ब्रैटन वुड्स संस्थानों, संयुक्त राष्ट्र, और टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) की अवधारणाएँ उभरीं, जिन्होंने वैश्विक शांति और विकास को बढ़ावा दिया और हमने इनमें अच्छी सफलता भी पाई। उसी तरह, आज, COVID-19 के बाद के आर्थिक झटके, यूक्रेन संकट, और वर्तमान आर्थिक उथल-पुथल एक नई वैश्विक वित्तीय वास्तुकला और संतुलित वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की माँग कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि 21वीं सदी में भी एक भीषण आर्थिक उथल-पुथल या "बड़ी आर्थिक खूनामर्की" के बाद ही नये युग का निर्माण संभव होगा।

5. निष्कर्ष: मानवता की यात्रा अधूरी है

21वीं सदी की चुनौती "डिजिटल उपनिवेशवाद" और "डेटा साम्राज्यवाद" से लड़ना है। क्रिप्टोकरेंसी (Crypto Currencies), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), और ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी (Blockchain) जैसे साधन नए हथियार हैं। आज की दुनिया मूल प्रवृत्तियों और वैश्विक नैतिकता के दो छोरों पर झूल रही है। परन्तु, इतिहास यह दर्शाता है कि हर आर्थिक मंदी, हर वित्तीय संकट, और हर नीतिगत टकराव ने मानवता को एक नये सोच, नये ढांचे और साझा समृद्धि के सिद्धांत की ओर अग्रसर किया है। न्यायसंगत वैश्वीकरण (Equitable Globalization) और बहुपक्षवाद (Multilateralism) ही टिकाऊ समाधान हैं। मानवता आर्थिक नैतिकता की ओर बढ़ रही है। हम इन वर्तमान आर्थिक संघर्षों से भी बाहर निकलेंगे। हो सकता है, आने वाला युग भूख और युद्ध के हथियारों की जगह नीतिगत सहयोग, वित्तीय न्याय और समावेशी विकास को हथियार बनाए।